कानपुरः जुआं और सट्टेबाजी अवैध है। इसके बावजूद हर आईपीएल मैच में चोरी छिपे करोड़ों का कारोबार होता है। IPL जैसी लीग अपने खेल प्रारूप के चलते खेल प्रेमियों के साथ-साथ सट्टेबाजों की पहली पसंद बन चुका है। क्रिकेट मैच में बुकी और खेलने वाले दोनों ही अपने-अपने तरीके से अनुमान लगाते हैं जिनमें कुछ पहलू अहम होते हैं जैसे मैच किस जगह खेला जाएगा, पिच कैसी है और टीम में कौन-कौन खिलाड़ी होंगे। ये सब जानने के बाद किसी मैच में टीम का भाव तय होता है। इसके भाव दुबई में तय होते हैं, जिसके बाद दुनिया भर में बैठे इस कारोबार से जुड़े लोगों तक रेट पहुंचाए जाते हैं। ये रेट सबसे पहले मुंबई पहुंचते हैं, जिसके बाद बड़े बुकीज और फिर वहां से छोटे बुकीज के पास पहुंचते हैं। अगर किसी टीम को फेवरेट मानकर रेट 30-33 आता है, तो इसका मतलब यह है कि फेवरेट टीम पर एक लाख लगाने पर 30 हजार रुपये मिलेंगे वहीं अनफेवरेट टीम पर 33 हजार लगाने पर एक लाख जीत सकते हैं, लेकिन जिस टीम पर सट्टा लगाया है, वह अगर हार गईं तो लगाया गया पूरा पैसा डूब जाएगा। मैच आगे बढ़ने के साथ ही टीमों के रेट भी बदलते रहते हैं।
मुखबिर पर आश्रित हुई पुलिस
सट्टेबाजों की धरपकड़ के लिए पुलिस पूरी तरह से मुखबिर तंत्र पर आश्रित है। बिना मुखबिर की सूचना पर पुलिस कार्रवाई नहीं कर पाती। मुखबिर के जरिए ही पुलिस को पता चलता है कि कौन सटोरिया किस एप के माध्यम से दांव लगा रहा है। मुखबिर को इतना भी पता रहता है कि हार हुई कि जीत हुई।
कैसे चलता है ‘खेल’
सट्टे पर पैसे लगाने वाले को पंटर कहते है। वहीं सट्टे के स्थानीय संचालक को बुकी कहा जाता है। सट्टे के खेल में कोड वर्ड का इस्तेमाल होता है। सट्टे की भाषा में खाई और लगाई इन दो शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। यानी किसी टीम को फेवरेट माना जाता है तो उस पर लगे दांव को लगाई कहते है। ऐसे में दूसरी टीम पर दांव लगाना हो तो उसे खाई कहते हैं।
आनलाइन और नकद हिसाब
सट्टे का डिजिटलीकरण होने के बाद लेनदेन भी आनलाइन और नकद चलता है। सटोरिए अक्सर विभिन्न एप के माध्यम से रुपयों का लेनदेन करते थे। हिसाब के लिए मोबाइल की रिकार्डिंग को प्रमाण के तौर पर इस्तेमाल करते है। पहले मैच खत्म होने के बाद अगले दिन हिसाब होता था लेकिन अब सटोरिये मैच खत्म होने के बाद ही हिसाब कर लेते हैं। यह ट्रांजक्शन एप और नकद दोनों तरीकों से होता है।