शाहजहांपुर: सुनो, स्कूल जाओगे? उत्तर- नाय (नहीं)। नई किताबें मिलें तो ? उत्तर-हम फिरऊ नाय जइयें। कार में बैठाकर ले जाएं तो… एडीएम वित्त अरविंद कुमार के तीसरे प्रश्न का उत्तर उन बच्चों के चमके चेहरों से महसूस किया जा सकता था। उन्होंने एक क्षण एडीएम को देखा, फिर कार को निहारने लगे। कुछ देर बाद सभी छह बच्चे एडीएम के साथ उन्हीं की कार में बैठकर सरकारी स्कूल गए। हंसी-खुशी प्रवेश कराया और खिलखिलाते हुए घर लौटे… स्वजन को यह बताते हुए कि अब कल्ल से स्कूल जरूर जइयें (अब कल से स्कूल जरूर जाएंगे)।
सोमवार को धनौरा के संविलियन विद्यालय का यह घटनाक्रम ‘स्कूल चलो अभियान’ की नब्ज जैसा महत्वपूर्ण है। अभी भी गांवों में दर्जनों बच्चे पारिवारिक माहौल या आर्थिक कमजोरी के परोक्ष कारणों से स्कूल नहीं जाते हैं। धनौरा गांव में कितने बच्चे छूट गए, यह जानने के लिए एडीएम वित्त अरविंद अरविंद कुमार सोमवार सुबह को ग्रामीणों के बीच बैठे थे। किस घर में कितने बच्चे हैं, वे कहां पढ़ते हैं, ऐसे कई बिंदुओं पर बातचीत हुई। इसी में पता चला कि करन, जितिन सिंह, अनन्या, साक्षी वर्मा, श्रवण वर्मा व सुरजीत स्कूल नहीं जाते हैं। ये सभी बच्चे पांच से सात वर्ष आयु के हैं। एडीएम उन सभी के घर पहुंच गए।
अभिभावकों से पूछाने पर
उनके अभिभावकों से पूछा कि बच्चे को स्कूल क्यों नहीं भेजते हैं, इस पर जवाब आया कि आर्थिक मजबूरी है। एडीएम ने उन्हें समझाया कि सरकारी स्कूल में फीस नहीं जाती है। भोजन, यूनिफार्म पुस्तकें निश्शुल्क मिलती हैं। वह महसूस कर रहे थे कि अभिभावकों के तर्क कम, बहाने ज्यादा हैं।
पढ़ाई का महत्व उनके दिमाग में घर कर जाए, इस प्रयास में एक घंटे तक उनकी काउंसिलिंग की। आखिरकार अभिभावक राजी हुए तब एडीएम ने बच्चों से बातचीत की। उनमें स्कूल जाने की उत्सुकता जगाई।