“मोबाइल युग की बरसात”
मौसम बदला, और बदल गए हम,
कहाँ से आया ये — चिपक गए हम।
कितना सुन्दर है आज का ये पल,
फिर भी आँखें गड़ी हैं स्क्रीन के दल।
कभी बरसात में भीगते थे हम,
ठंडी हवा में सीकते थे हम।
पकौड़ियों की खुशबू उड़ती थी घर,
अब नोटिफिकेशन है सबसे प्रखर।
अशोक! अगर हर हाथ में मोबाइल न होता,
तो भीगते, हँसते — कुछ असली पल होता।
अब बारिश भी बस एक स्टोरी बनी है,
पकौड़ियाँ नहीं, बस रीलों की गिनती बनी है।
अशोक कुमार श्रीवास्तव (साहित्यकार, लेखक)